रेपका इतिहास 1980 के प्रारंभ तक, भारतीय रेल पहियों एवं धुरों की अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर रहता था । देशज क्षमता केवल टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टिस्को) एवं दुर्गापुर इस्पात कारखाना (डीएसपी) में ही उपलब्ध थी । नए डिजाइन के चल स्टॉक के लिए पहिए और धुरों की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए टिस्को कारखाना तकनीकी रूप से समर्थ नहीं था । डीएसपी का उत्पादन न के बराबर था और यह कारखाना रेल की जरूरतों को केवल आंशिक रूप से ही पूरा कर पा रहा था । विश्व बाजार में मूल्यों की बढ़ोतरी के कारण आयात की लागत बहुत ज्यादा थी । आयात के लिए वित्त का प्रबंध करना, आपूर्ति करने में विलंब और विदेशी विनिमय की सीमित उपलब्धता, इन सब के कारण वैगन का उत्पादन और चल स्टॉक अनुरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । इसी संदर्भ में, 1970 के प्रारंभ में रेल मंत्रालय को चल स्टॉक के पहिए और धुरों के विनिर्माण के लिए एक नई विशेषज्ञ उत्पादन इकाई स्थापित करने की आवश्यक्ता महसूस हुई । मूल उद्देश्य यह था कि डीएसपी एवं रेल पहिया कारखाना (पूर्व पहिया व धुरा कारखाना) दोनों मिलकर मानक पहिए और धुरों को भारतीय रेल की जरूरत को पूरी तरह से पूरा कर सकें ताकि इनके आयात को बंद किया जा सके ।
विश्व में उपलब्ध उपस्करों, नवीनतम प्रौद्योगिकी तथा सहयोग एवं आवश्यक विदेशी विनिमय की संभाव्यता के बारे में एक व्यापक अध्ययन किया गया । इस अध्ययन के आधार पर भा. रे. ने निम्नलिखित बिंदुओं पर निर्णय लेते हुए, 70 के दशक के मध्य में रेल पहिया
कारखाना परियोजना की परिकल्पना की कि -
पहिया विनिर्माण के लिए मैसर्स ग्रिफिन व्हील कंपनी यू एस ए, द्वारा विकसित कास्ट पहिया प्रौद्योगिकी को अपनाया जाएगा । अमरीकी रेल रोड्स माल परिचालन के लिए कास्ट पहियों का प्रयोग करते हैं जबकि यूरोपीय रेलवे फोर्ज किए गए पहियों का प्रयोग करते हैं।
कास्ट पहिया प्रौद्योगिकी को अपनाना ज्यादा उपयोगी लगा क्योंकि कारखाना की उत्पादकता अधिक होती है और फोर्ज किए गए पहिए की तुलना में उत्पादन लागत कम होती है । पहियों के आयात पर विदेशी विनिमय में होने वाली कुल बचत प्रतिवर्ष 8 करोड़ रुपये अनुमानित की गई ।
धुरों के संचलन के लिए स्वचालित कन्वेयर युक्त विशेष प्रयोजन के लाँग फोर्जिंग मशीन में धुरा फोर्ज किया जाएगा तदुपरांत तोपोपचार किया जाएगा ।
धुरों का संचलन करने और संभालने के लिए एकीकृत इंजीनियरी युक्त एक पहिया सेट एसेम्बली कांप्लेक्स, विशेष प्रयोजन के एंड मशीनिंग उपस्कर और प्रोफाइल कोपिइंग लेथ युक्त धुरा मशीनिंग सुविधाओं का प्रावधान करना ।
सन् 1978 में योजना आयोग ने 146 करोड़ रुपये की लागत से रेल पहिया कारखाना परियोजना की मंजूरी दी । वर्ष 1983 के दौरान परीक्षण उत्पादन प्रारंभ हुआ । 15 सितंबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री, स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कारखाना को औपचारिक रूप से प्रारंभ किया । इस तथ्य को सुदृढ़ करने के लिए कि हम भारतीय रेल परिवार के सदस्य हैं और समय के साथ-साथ बदलने की हमारी वचनबद्धता को उजागर करने के लिए, कारखाना का दिनांक 15 फरवरी 2003 को रेल पहिया कारखाना के रूपमें पुनः नामकरण किया गया ।
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